आजकल एक वीडियों वायरल हो रहा है। कश्मीर में सेना/पुलिस की एक गाड़ी जा रही है और आंतकियों के समर्थक पत्थरबाज उस वाहन को चारों तरफ से घेर कर पत्थर बरसा रहे हैं। भीड को देखकर यहीं लगता है कि जैसे उनका वश चले तो पूरी गाड़ी को जलाकर रख देंगे। कोई पत्थर तो कोई सायकिल उठाकर वाहन पर फेंक रहा है। कुछ युवक वाहन के बोनट पर चढ़कर हमला कर रहे हैं। वाहन में सेना या पुलिस के जो भी जवान बैठे हैं वे जान बचाकर दूर भाग जाना चाहते हैं। तभी एक पत्थरबाज का पैर फिसलता है और वह गाड़ी के नीचे आकर कुचल जाता है। हो सकता है उसकी मौत भी हो गयी हो। इसके बाद सोशल मीडिया पर कुछ कथित शान्तिदूतों ने ऐसी हाय तौबा मचायी है जैसे पुलिस या सेना ने अत्याचार कर दिया हो। अपनी जान बचाकर गाड़ी लेकर भागने वाले पुलिसकर्मियों से ऐसे मुसलमानों को कोई हमदर्दी नहीं है, जो भले ही उन पत्थरबाजों की पकड़ में आकर मौत के मुंह में चले जाते। आखिर आतंकियों और पाकिस्तानियों का समर्थन करने वाले ऐसे शान्तिदूतों से देशप्रेम और वफा की उम्मीद कैसे रखी जा सकती है।
आखिर भूल किसकी है!
यदि कोई हमला करता है और संयोगवश वाहन के नीचे आ जाता तो कसूर वाहन चलाने वाले का नहीं बल्कि उन्हीं के हैं जो अपने ही देश की सेना और पुलिस का विरोध करते हैं। जो पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हैं और देश के विरोधियों की वकालत करते हैं।
देखने वाली बात यह है कि पाकिस्तान और मुस्लिम प्रेम में मगन धर्मान्ध मुस्लिमों को कुचले गये युवक की गलती नहीं दिखती बल्कि वह पुलिस और सेना का अत्याचार दिखता है, क्योंकि कश्मीर में भाजपा के समर्थन में सरकार बनी है और भाजपा का विरोध करने के लिये ऐसे कट्टर मुसलमानों को देश का विरोध करने से भी गुरेज नहीं हैं।
आरएसएस का विरोध क्यों करते हैं अधिसंख्य मुस्लिम
देश में जब कभी आपात स्थिति आयी है तो आरएसएस हमेशा लोगों की मदद करते दिखायी दे जाती है। चाहे केदारनाथ की घटना हो या कश्मीर की बाढ़, आरएसएस ने सदैव लोगों की मदद की है। देखने में आता है कि जब कहीं पर कोई हिन्दू किसी अपराधिक गतिविधियों में पकड़ा जाता है तो वह किसी भी पार्टी का समर्थक हो उसे कट्टर मुस्लिम आरएसएस का घोषित कर देते हैं। जबकि आरएसएस किसी को कट्टरता नहीं सिखाती है।
वहीं धर्मान्ध मुस्लिम विरोध इसलिये करते हैं क्योंकि आरएसएस हिन्दुओं को एकजुट करके उन्हे देशहित के रास्ते पर ले जाती है और हिन्दुओं का एकजुट होना कट्टर मुस्लिमों को रास नहीं आता।
आइएसआइएस और आतंकियों का विरोध क्यों नही करते मुस्लिम
अपनी कट्टरता की वजह से जहां भी मुस्लिम आबादी अधिक हुई है वहां दूसरे धर्मो को यह लोग आराम से रहने नहीं देते। इरान इराक सीरिया, पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे तमाम देश इसके उदाहरण है। बंटवारे के समय पाकिस्तान के 25 प्रतिशत हिन्दू अब जबरदस्ती धर्म परिवर्तन हत्या जैसी घटनाओं के कारण दो प्रतिशत भी नहीं बचे हैं। भारत में ही जहां पर मुस्लिम आबादी अधिक है वहां दूसरे धर्मों के लोगों का रहना कठिन हो गया है। पष्चिम बंगाल केरल जैसे उदाहरण सामने हैं।
सोचने वाली बात है कि किसी आतंकी या पत्थरबाज के मरने पर जितना अफसोस इन मुस्लिमों को होता है उतना किसी सेना या पुलिस के जवान के मरने पर क्यों नहीं होता। गुजरात की घटना का रोना रोने वाले मुस्लिम कभी गोधरा पर दुख क्यों नहीं जताये।
10-15 और हूर जाते इस गाड़ी के नीचे आने से तो और बढ़िया होता !
बस धारा 370 हटा दी और लोगो को वहाँ जमीन खरीद औऱ बसने की अनुमती मिल जाए तो ए आतंकी हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे !