हमारे जीवन में पारिवारिक रिश्तों के अलावा बहुत सारे नए रिश्ते बन जाते हैं। कोई पढ़ाई के दौरान मित्र बन जाता है तो पूरे जीवन काल तक मित्रता बनी रहती है। कभी नौकरी के दौरान नए रिश्ते बन जाते हैं तो कभी यात्रा के दौरान कोई ऐसा मिल जाता है कि पूरे जीवन काल तक सम्बन्ध बनाये रखने का दिल करता है। यह रिश्ते मित्र, भाई-बहन आदि जैसे किसी भी रिश्ते में विकसित हो जाते हैं। अब तो सोशल मीडिया पर भी मुलाकात होने के बाद अभिन्न मित्र बन जाते हैं। ऐसे कई उदाहरण भी हैं। एक मनुष्य होने के नाते हमें सभी रिश्तों को संजोकर रखने की कोशिश भी करनी चाहिए।
कभी-कभी कुछ रिश्ते अनजान रह जाते हैं। जैसे हम यात्रा के दौरान किसी सज्जन से मिले, अच्छी बातें हुई, अच्छा महसूस हुआ। परन्तु वह क्षणिक साथ छूटने के बाद ऐसा लगता है कि फलां व्यक्ति तो बहुत अच्छा था लेकिन अब तो उससे मुलाकात नहीं हो सकती। इस प्रकार का क्षणिक मुलाकात एक ‘अंजान रिश्ते’ तक ही सीमित रह जाता है।
ऐसे ही यात्रा के दौरान एक ‘अंजान रिश्ता’ मुझसे भी जुड़ गया। मैं अपने कंपनी के कार्य हेतु गोंडा(उत्तर प्रदेश) की यात्रा पर था। गोंडा से मुझे इटियाथोक (गोंडा जनपद के अंतर्गत) अपने मित्र के घर पर रुकना था व अगले दिन बलरामपुर जाना था।
बीते 23 जनवरी को गोंडा में अपना काम पूरा करके इटियाथोक जाने की बस का इंतजार कर रहा था, परन्तु बस की सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी, पता करने के लिए धीरे-धीरे उसी सड़क पर आगे बढ़ रहा था । इतने में ही एक सभ्य लड़की पीछे से आवाज लगाई- जरा रुकिए भइया¡ मेरे भी मुँह से अनायास ही निकल गया- बोलो बहन¡ उसने प्रश्न स्वरूप बोला कि “भइया बलरामपुर की बस नहीं मिल रही है कहाँ से मिलेगी? आपको भी वहीं जाना है क्या?” मैंने भी हाँ बोला। इसके बाद वह ‘बहन’ मेरे साथ ही थी। बातों-बातों में उसने बताया कि बलरामपुर की रहने वाली है और यूपी टीईटी की परीक्षा देकर लखनऊ से आ रही है। तब तक बस भी आ गयी, मैं आगे-आगे था और वह मेरे साथ में पीछे-पीछे ही थी। शायद वह भी मेरे साथ अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही थी। मैंने भी अपने परिवार के सदस्य की तरह पहले उसे बस में बिठाया फिर मैं बस में चढ़ा। फिर दोनों अलग-अलग सीट पर बैठ गए।
परन्तु बस के उतरने के बाद मुझे याद आया कि मैंने उस ‘अनजानी बहन’ से नाम-पता तो पूछा ही नहीं। मात्र पांच-दस मिनट की क्षणिक मुलाकात में न जाने क्यों उसके साथ अपनापन सा लगा था। कुछ समय तक मैं इसी विचार में डूबा था कि इतनी छोटी सी मुलाकात में एक अनजान के प्रति मन में इतना लगाव कैसे हो गया। साथ ही मन में एक मलाल रह गया कि यह रिश्ता तो एक ‘अनजान रिश्ता’ ही रह गया।
अंकित कुमार मिश्र