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17 साल के बाद पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा ने फिर थामा भाजपा का दामन

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पूर्वांचल के बड़े ब्राह्मण चेहरा हैं रंगनाथ, बदल सकती है भदोही की चुनावी फिजां

टैक्सी यूनियन से किया था राजनीति की शुरूआत, प्रदेश सरकार में मिले कई मंत्रालय

 

भदोही। विधानसभा चुनाव 2022 की रणभेरी बजते ही राजनीतिक दलों में भगदड़ की स्थिति लगातार बनी हुई है। विभिन्न राजनीतिक दलों के असंतुष्ट नेता दूसरे दलों का दामन थामने में लगे हुये हैं। बसपा के कद्दावर ब्राह्मण नेता व प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे रंगनाथ मिश्रा ने बसपा को झटका देते हुये एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया। उन्होंने 17 साल के बाद घर वापसी की है। शनिवार को लखनउ में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के समक्ष श्री मिश्रा ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। भदोही जिले की औराई विधानसभा सीट से वे चार बार विधायक रहने के साथ भाजपा व बसपा सरकार में कई विभागों के मंत्री रह चुके हैं।

बता दें कि पिछले काफी दिनों से पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा के घर वापसी की चर्चा हो रही थी किन्तु राजनीति के मंझे हुये खिलाड़ी श्री मिश्र अपने पत्ते नहीं खोल रहे थे। पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा ने अपना राजनीतिक जीवन ही भाजपा से शुरू किया था। जब भदोही वाराणसी जिले का अंग था तब वे वाराणसी के भाजपा जिलाध्यक्ष चुने गये थे। इसके बाद वे 1993, 1996, 2005 और 2007 विधानसभा चुनाव जीते। रंगनाथ मिश्रा को कल्याण सिंह का हमेशा करीबी माना जाता रहा। 1991 में जिलाध्यक्ष बनने के बाद कल्याण सिंह के कहने पर उन्होंने पहले लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया। उन्होंने पार्टी से टिकट से मांगा लेकिन बात नहीं बनी। टिकट न मिलने से वे नाराज थे, लेकिन कल्याण सिंह ने उन्हें मनाया और उसी साल हो रहे विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा। 10वीं लोकसभा चुनाव के लिए वीरेंद्र सिंह मस्त को मिर्जापुर से टिकट मिला, रंगनाथ मिश्रा भी यहीं से टिकट मांग रहे थे। खैर, उन्हें औराई विधानसभा क्षेत्र के लिए पार्टी ने टिकट दिया, जहां के वे रहने वाले हैं। राम लहर में हुए इस चुनाव में 419 में से 221 सीट जीतकर भाजपा ने सरकार बनाई और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने, लेकिन रंगनाथ को नजदीकी हार झेलनी पड़ी। उन्हें जनता दल के योगेश चंद्र ने 1,568 से वोटों से हराया।

विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद रंगनाथ ने मंथन किया। उन्हें जो पहली बात समझ आई वह यह कि जिला बड़ा होने की वजह से उनका प्रभाव कम रहा। वे तब बनारस के भाजपा अध्यक्ष थे ही। उन्होंने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से भदोही को अलग जिला बनाने की मांग की और इस पर सहमति बन गयी। किन्तु भाजपा शासनकाल में जिले की मांग पूरी नहीं हो पायी। 6 दिसंबर 1992 में बाबरी ढांचा गिरने के बाद कल्याण सरकार चली गयी और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया। चुनाव हुआ और मुलायमसिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने 30 जून 1994 में भदोही को बनारस से अलग करके नया जिला घोषित कर दिया। रंगनाथ मिश्रा नए जिले के पहले भाजपा अध्यक्ष चुने गये थे।

टैक्सी यूनियन के नेता बनने से बदली कहानी

1991 में भाजपा 221 सीटें लेकर यूपी विधानसभा में आई लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई और कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। 1993 में फिर चुनाव हुए। भाजपा के वोट तो बढ़े पर सीट घट गयी। 1993 में जब चुनाव हुए तो रंगनाथ एक बार फिर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन इस बार स्थिति अलग थी। माहौल उनके खिलाफ था। कल्याण सिंह अलग मसलों को लेकर फंसे थे।
लेकिन इस मुश्किल समय में रंगनाथ का साथ दिया टैक्सी, आटों और जीप ड्राइवर्स ने। इन चालकों ने रंगनाथ के पक्ष में न सिर्फ माहौल बनावाया, उनके राजनीतिक कैरियर को उठाने में भी अहम भूमिका निभाई। श्री मिश्रा के मंझले बेटे डॉ. ज्ञान मिश्रा बताते हैं, ‘भदोही के बहुत से लोग आज भी कहते हैं कि रंगनाथ मिश्रा राजनीति में आने से पहले टैक्सी ड्राइवर थे। लेकिन यह भ्रामक जानकारी है, बात कुछ और है जो लोगों को पता नहीं है।’
वे आगे बताते हैं, 90 के दशक में औराई होते हुए भदोही, मिर्जापुर के बीच जो भी जीप, टैक्सी या आटो चलते थे, उनसे वसूली मांगी जाती थी। भदोही के जिलाध्यक्ष बनने पर पिता जी ने दो जीप निकलवाई, तब उन्हें इस वसूली की जानकारी मिली। इसके बाद वे धरने पर बैठे और प्रशासन से वसूली को तत्काल बंद कराने की मांग की। प्रशासन ने बात सुनी और वसूली बंद करा दी गई। इससे टैक्सी और आटों ने पिता जी को अपना नेता चुन लिया। तब तक वे युवा मोर्चा में शामिल हो चुके थे। इस घटना के बाद क्षेत्र में रंगनाथ की धाक और जम गई। जिले में भाजपा की बैठक से ज्यादा भीड़ युवा मोर्चा की बैठक में होने लगी। ड्राइवर बड़ी संख्या में अपनी गाड़ी लेकर पहुंचते थे। उन्हें बस एक बार कहना ही होता था। ये चर्चा का विषय बना कि भाजपा की बैठक से ज्यादा भीड़ तो युवा मोर्चा की बैठक में होती है, और ये श्री मिश्रा के लिये टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।

1993 में दर्ज की पहली जीत

जिले में रंगनाथ मिश्रा के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए भाजपा ने उन्हें 1993 में फिर टिकट दिया। 12वें विधानसभा चुनाव में 177 सीट जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी तो रही लेकिन सरकार बनी समाजवादी पार्टी की। मुलायम सिंह यादव पहली बार प्रदेश के सीएम बने। इस बार भी कल्याण सिंह ने साथ दिया और उनकी सिफारिश से रंगनाथ को टिकट मिला। औराई से उन्होंने बसपा की राजकुमारी को 9,398 से वोटों से हराकर पहली बार विधानसभा चुनाव जीता। तीन साल बाद 1996 में फिर चुनाव हुआ। रंगनाथ ने इस बार इसी सीट पर समाजवादी पार्टी के जाहिद बेग को 12,224 वोटों हराया। 13वें विधानसभा चुनाव में भी भाजपा 174 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी लेकिन स्पष्ट बहुमत न होने के कारण प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा जो कुल 154 दिनों तक रहा।

इसके बाद प्रदेश में मायावती सत्ता में आती हैं और 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर तक, कुल 184 दिन प्रदेश की बागडोर उनके हाथ रही। भाजपा फिर सत्ता में लौटती है और कल्याण सिंह दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेते हैं। इसी दौरान रंगनाथ को मंत्रालय में जगह मिली। पहले ऊर्जा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। 13वें विधानसभा में ही राजनाथ सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं। तब रंगनाथ को परिवार कल्याण मंत्रालय और वन विभाग की भी जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 2000 में गृह मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार के साथ-साथ संबंध मुख्यमंत्री जैसी जिम्मेदारी सौंपी गई।

24 घंटे बिजली के लिए कर दी थी बगावत

बात 1999 की है। कल्याण सिंह की सरकार थी। रंगनाथ ऊर्जा मंत्री (राज्य) थे और नरेश अग्रवाल इस विभाग के कैबिनेट मंत्री थे। उस समय नरेश अग्रवाल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष थे और उनके समर्थन में सरकार चल रही थी। खबर आई कि नरेश अग्रवाल अपने जिला हरदोई को 24 घंटे बिजली उपलब्ध करा रहे हैं। इसके बाद रंगनाथ ने अधिकारियों की बैठक बुलाई और कहा कि हमारे जिले भदोही में भी 24 घंटे बिजली आनी चाहिए। नरेश ने रंगनाथ के फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि 24 घंटे बिजली बस उनके विधानसभा क्षेत्र को दी जा सकती है। रंगनाथ लखनऊ पहुंचते हैं और कल्याण सिंह के सामने त्याग पत्र रख देते हैं। बवाल इतना बढ़ गया कि नरेश अग्रवाल लाल कृष्ण आडवाणी तक पहुंच जाते हैं।
आडवाणी कल्याण सिंह को फोन घुमाते हैं। मामला सरकार को बचाने का भी था। खबरें आने लगीं कि नाराज नरेश अपना समर्थन वापस ले सकते हैं। ऊपर से आदेश आया कि रंगनाथ से ऊर्जा मंत्रालय ले लिया जाए, लेकिन कल्याण सिंह ने चार महीने और उन्हें इस मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी रखी। 2002 तक भदोही को 24 घंटे बिजली मिलती रही।

2005 में थामा बसपा का हाथ

2002 में हुए चुनाव में औराई विधानसभा सीट से रंगनाथ को उदयभान सिंह उर्फ डाक्टर सिंह के हाथों हार झेलनी पड़ी। इसके बाद 2005 में रंगनाथ बसपा में शामिल हो जाते हैं। दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा में ये उस समय का सबसे बड़ा ब्राह्मण चेहरा था। दरअसल 2007 में बसपा की जीत की कहानी की बुनियाद यहीं से रखी गई थी। इस चुनाव में उन्होंने सपा की रीता सिंह (उदय भान सिंह की पत्नी) को हराकर बसपा से पहली बार जीत दर्ज की। 2007 में जब बसपा पूर्ण बहुमत में आई थी, तो इस बार भी उन्होंने रीता सिंह को हराया। मायावती की सरकार में वे माध्यमिक शिक्षा मंत्री बने। इसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में मिर्जापुर और पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें भदोही विधानसभा से टिकट दिया लेकिन दोनो ही चुनाव में उन्हें हार मिली। 2017 में भदोही विधानसभा और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें भदोही से लोकसभा का टिकट दिया, लेकिन इस बार भी उनके हिस्से हार ही आई। 17 साल के बाद श्री मिश्र के भाजपा में घर वापसी करते ही जिले की राजनीति गर्म हो चुकी है। कहा जा रहा है कि सिर्फ भदोही ही नहीं बल्कि पूर्वांचल के कई जिलों में भाजपा का वर्चस्व बढ़ेगा। पिछले काफी दिनों से नाराज चल रहे ब्राह्मणों को एकजुट करने में भाजपा का यह दाव कारगर होगा।

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