संतोष कुमार तिवारी
देश की आजादी के लिये अपने जान को न्यौछावर करने वाले वीर महापुरूष आजादी का झंडा बुलन्द करते समय कभी यह परिकल्पना नहीं की होगी कि आजादी के बाद देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं के राजनीति करने का उद्देश्य केवल किसी भी तरह से सत्ता पर काबिज होना होगा।
देश के सभी राजनैतिक दल केवल ऐन-केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होने के जुगाड़ में लगे रहते है, जो नेताओं के नीति व एजेंडा पर सवाल उठाता हैl इसका उदाहरण चुनावों के समय बखूबी देखा जा सकता है, चाहे आम चुनाव हो या उपचुनाव नेताओं की सत्ता पर काबिज होने की लालसा के आगे सभी नीति, वादे, विचारधारा एक तरफ रख दिये जाते है। केवल चुनाव जीतने के लिये देश की जनता को गुमराह किया जाता है और जनता भी नेताओं के चक्कर में पड़कर आपसी मनमुटाव या विरोध करती है, बाद में खुद पछताना पड़ता है।l
वर्तमान समय में देश की कई क्षेत्रीय दल मिलकर 2019 में भाजपा को दिल्ली में केन्द्रीय सरकार बनाने से रोकने के लिये कमर कस कर तैयार है, लेकिन कहीं यह दांव विपक्षियों के लिये बुरा न साबित हो क्योंकि सबसे बडी समस्या यह है कि विरोधी दल ने आगामी प्रधानमंत्री के लिये नेता नही चुना है शायद नेता इसलिये नहीं बता रहे है कि नेता की घोषणा हो जाने पर संगठन चुनाव के पहले ही बिखर जायेगा।
सपा, बसपा, कांग्रेस, टीएमसी समेत दलों ने भाजपा को हराने के लिये एक अवसरवादी गठबंधन करने की तैयारी की है। वैसे भारत में गठबंधनों का दौर तो 1989 से शुरू हो गया था। इसमें भाजपा ने भी कई गठबंधन किये और सरकार भी बनी, जबकि सपा व बसपा ने भी अपने कई गिले शिकवे भुलाकर सरकार बनाकर सत्ता पर काबिज हुयेl यही हाल सभी दलों का रहा है।
अभी हाल ही में हुये उपचुनाव में गठबंधन की जीत से सपा, बसपा, कांग्रेस ने खुशी जाहिर की और भाजपा की हार का सिलसिला शुरू होना मान लिया लेकिन विपक्ष को ध्यान होना चाहिये कि भाजपा भले ही इधर हुये उपचुनावों में हारी हो, लेकिन आम चुनाव में जीत दर्ज करके विपक्ष के लिये चिंता का विषय बनाया है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि देश की जनता केवल नेताओं के राजनीति में ही पिसेगी कि देश में बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार समेत कई बेहद जरूरी मुद्गों से मुक्ति भी पायेगी?
क्या आज के नेताओं का परम लक्ष्य केवल सत्ता पाना ही रह गया है उनके पास न कोई मुद्दा न कोई विचारधारा केवल सत्ता पर काबिज होने के लिये अपने चिर परिचित विरोधी से भी हाथ मिलाने से बाज नही आते है।
जिनकी सरकार नही है वे वर्तमान सरकार का विरोध कर रहे है और जिनकी सरकार है वे विपक्षियों के आरोप को सिरे से नकारते हुये विकास, कानून व्यवस्था, रोजगार आदि की बात करते है। हालांकि नेताओं की बातों से लगता है कि उनकी सरकार आने या उनके जीतने पर सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह केवल बात झूठी साबित होती है।
जनता केवल एक के बाद एक हो रहे चुनावों में परेशान है जबकि नेता अपने राजनीति चमकाने के चक्कर मेंl देश का विकास जब गति पकड़े तो कही न कही हडताल, विरोध, प्राकृतिक आपदा या घोटाले बराबर कर देते है। यदि वास्तव में देश के नेता देश का विकास चाहते है तो उन्हें अपनी विचारधारा में वर्तमान सरकारों के प्रति सकारात्मकता लानी होगी और सरकार द्वारा किये गये देशहित कार्यों का खुलेदिल से समर्थन करना चाहिये न कि हर कार्यों पर विरोध ही करें।
नेता बयानबाजी करें तो सच्ची हो न कि केवल राजनीति व विरोध से प्रेरित हो। क्योंकि नेताओं की बात का प्रभाव जनता पर पड़ता है और जनता उसे अपने हिसाब से समझने लगती है। वर्तमान नेताओं की नकल भविष्य के नेता भी करेंगे, इसलिये एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करें जिससे आगे आने वाली पीढी आपको आदर्श बनाकर राजनीति करें। हालांकि आज भी बहुत ऐसे नेता है जो सत्ता को कम देशहित को ज्यादा महत्व देते है। काश, देश के सभी नेता ऐसे हो जाते तो भारत को विश्व की ताकत व विकसित देश होने से कोई रोक नही सकता है। बशर्ते विचारधारा व कार्यों में देशहित सर्वोपरी हो।