भारतीय लोकतंत्र इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस की अपेक्षाकृत नया है। यहाँ की जनता का शैक्षिक स्तर भी बड़ा कमजोर है। उनमें देश के प्रति कर्तव्य और अधिकारों की अच्छी समझ नहीं है। कुल मिला कर कह सकते हैं कि नागरिकों में जागरूकता की कमी है। नागरिकों का उत्तम चरित्र राष्ट्र को सबल बनाता है और घटिया आचरण उसे पतन दलदल में ढ़केल देता है। सभ्यता के उच्च मानक वाले राष्ट्र के निर्माण में सदियां लग जाती हैं। सन् 1947 में भारत ने आजादी हासिल की थी। सन् 1997 मे आजादी की पचासवीं वर्षगाँठ मनाई गई थी। अब सन् 2047 शताब्दी मनाई जाएगी। हम कह सकते हैं कि हमारा लोकतंत्र अभी शैशव अवस्था में है।
कहने को तो हमारी राजनैतिक व्यवस्था भारतीय संविधान से संचालित होती है मगर हमारी समस्त सामाजिक गतिविधियां तीज-त्योहार मनुवादी विधान पर आधारित हैं। एक व्यवस्था समतावादी है तो दूसरी व्यवस्था विषमतावादी है। एक गतिशील है तो दूसरी यथास्थितिवादी है। इस प्रकार दोनों व्यवस्थाएं एक दूसरे की विरोधाभासी हैं। परिणाम स्वरूप पूरा भारत अनेक धड़ों बंटा है। हर धड़ा देश प्रति निष्ठावान होने के बजाय अपने लिए समर्पित है। हर तरफ खींचतान मची है। यह ऐसी विसंगति है जो भारत के विकास में सबसे अधिक बाधक है।
यदि अपने देश की उपमा एक विशाल वृक्ष से करें तो उसकी जड़ों को खाद-पानी देकर मजबूत करना होगा। जड़ों के द्वारा खुराक पेड़ के हर हिस्से में पहुंच जाएगी। देश के मजदूर और किसान देश की जड़ों के समान हैं। लोकतंत्र म़े जनाक्रोश जागरूकता का पर्याय है। वह एक तरह से निरंकुशता पर लगाम लगाता है। जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ेगी व्यवस्था मे सुधार होगा। परिणाम स्वरूप जन आकांक्षाएं तृप्त होंगी। प्राय: तात्कालिक राजनैतिक चेतना और जागरूकता दीर्ध जीवी छाप नहीं छोड़ पाते हैं। वस्तुतः जागरूकता एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।