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मन की बात: पानीपत का तीसरा युद्ध और “NOTA”

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अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया। कोई उसे रोकने का साहस न कर सका। तब महाराष्ट्र से मराठा पेशवा ने उसको टक्कर देने की कोशिश की। अब्दाली को रोकने के लिए मराठा सेना पानीपत पहुच गई। मराठों ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों से आव्हान किया कि – वे अब्दाली को रोकने में उनका साथ दे, लेकिन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों ने NOTA दबा दिया। बोले यह हमारी लड़ाई थोड़े ही है। यह तो अफगानों और मराठों की लड़ाई है। स्थानीय हिन्दू NOTA दबा कर पीछे हट गए, लेकिन स्थानीय मुसलमानों ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। पानीपत के इस युद्ध में मराठा हार गए और अब्दाली जीत गया।

लेकिन उस जीत के बाद “अहमदशाह अब्दाली” ने महाराष्ट्र में नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश में भयानक कत्लेआम किया। कुरुक्षेत्र, पेहोवा, दिल्ली, मथुरा, वृन्दावन आदि के मंदिर तोड़े। यहीं की औरतों के साथ बलात्कार किया और अपने साथ गुलाम बनाकर ले गया। महाराष्ट्र का वो कुछ नुकसान नहीं कर सका।

अब्दाली के पास 60,000 की सेना थी और पेशवा के पास लगभग 50,000. पेशवा को उम्मीद थी कि – राजपूत, जाट, सिक्ख एवं स्थानीय हिन्दू उनका साथ देंगे लेकिन इन सब ने यह सोच कर लड़ाई से किनारा कर लिया कि- अगर मराठे जीत गए तो उत्तर भारत में मराठों का वर्चस्व हो जाएगा। मराठों को साथ मिलना तो दूर भोजन तक नहीं मिला।

इसके विपरीत अब्दाली द्वारा जेहाद का नारा देते ही अवध का नवाव सुजाउददौला, बरेली का रोहिल्ला सरदार एवं स्थानीय छोटी छोटी मुस्लिम रियासतें और जागीरदार अब्दाली के साथ मिल गये। अब्दाली की साठ हजार की सेना सवा लाख हो गई और 50,000 मराठा सैनिक खाली पेट युद्ध लड़ रहे थे। परिणाम आपको पता ही है।

पानीपत का तीसरा युद्ध इस तरह सम्मिलित इस्लामिक सेना और मराठाओं के बीच लड़ा गया। अवध के नवाब ने इसे इस्लामिक सेना का नाम दिया और बाकी मुसलमानों को भी इस्लाम के नाम पर इकट्ठा किया। जबकि मराठा सेना ने अन्य हिन्दू राजाओं से सहायता की उम्मीद की थी, लेकिन उत्तर भारत के हिन्दू तटस्थ (NOTA) रहे।

पानीपत की वह लड़ाई 14 जनवरी 1761 मकरसंक्रांति के बेहद सर्द दिन लड़ी गई थी। महाराष्ट्र / गुजरात / मध्य प्रदेश के रहने वाले मराठा उस ठण्ड के आदी नहीं थे और न ही उनके पास गर्म कपडे थे। स्थानीय लोगों ने मराठा सैनिकों को भोजन और गर्म कपड़े तक नहीं दिए। वो यह सोचते थे कि – अब्दाली से हमारी कोई दुश्मनी थोड़े ही है।

जबकि पानीपत का युद्ध जीतने के बाद अब्दाली और स्थानीय मुसलमानों ने मराठों से ज्यादा स्थानीय हिन्दुओं और सिक्खों को नुकसान पहुंचाया था। याद रखिये जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते है वो मिट्टी में मिल जाते हैं। धर्मयुद्ध में कोई तटस्थ नहीं रह सकता, जो धर्म के साथ नहीं वह धर्म के विरुद्ध माना ही जाएगा।

सबक ले सको तो ले लो, नहीं तो इतिहास है ही।

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