शाम ढल रही थी और बनारस के कैण्ट स्टेशन पर लोग अपनी ट्रेन पकड़ने के लिये इधर से उधर आ जा रहे थे। सब कुछ सामान्य गति से चल रहा था। कैण्ट स्टेशन के सामने वाली सड़क पर हमेशा की तरह भीड़ जमा थी। कोई अपने वाहन से घर जा रहा था तो कोई आटो पकड़कर अपने गंतव्य को पहुंचना चाहता था। ट्रैफिक के दबाव को कम करने के लिये बन रहे ओवरब्रिज पर काम शुरू था। अचानक लोगों के कानों में तेज गड़गड़ाहट की आवाज गूंज उठी। लगा जैसे कहीं बम फटा हो। लोगों ने देखा निर्माणाधीन ओवरब्रिज के दो स्लैब नीचे चल रहे लोगों पर गिर चुके थे। अचानक अफरा-तफरी का माहौल व्याप्त हो गया। पल भर में ही शांत दिखने वाले शहर में हड़कम्प मच गया। स्लैब के नीचे कई बाइकर्स, कार, ऑटो, बस सब दबे पड़े हैं। यह भयावह मंजर देख लोगों की रूह कांप गई। पुल का बड़ा स्लैब बस के बीचोबीच गिरा है। गाड़ियां चिपटी हो गई हैं, लोग दबे पड़े हैं। चहुओर सिर्फ चीखें ही सुनाई पड़ रही थीं, मदद की गुहार लगाई जा रही थी। कोई पानी मांग रहा था तो कोई खून रोकने के लिए कपड़े। घटनास्थल पर ही कुछ ने दम तोड़ दिया था। स्लैब के नीचे दबे वाहनों से कितने लोगों के शरीर के टुकड़े कट कर लटक रहे थे। स्लैब के नीचे दबे वाहनों से खून टपक कर नीचे बह रहा था। जो लोग इस मंजर को देख रहे थे उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि लोगों की मदद कैसे करें। कई जिंदगियां लाचार पड़ी थीं मलबे में दबकर। मददगार चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। पूरा माहौल चीख पुकार में बदल चुका था।
घटना के बाद लोग इधर-उधर भाग रहे थे, वह अपने परिजनों को खोज रहे थे। यह मौत का मंजर देख हालत ख़राब थी। मगर कुछ इतने गैर-जिम्मेदार थे जिन्हे शायद मानवीयता का बोध ही न था। वे चाहते तो बुजुर्गों की मदद को आगे आ सकते थे। बच्चों का रूदन देखकर कलेजा कांप उठा था, लेकिन वे अपने मोबाइलों से सेल्फी लेने और फोटो-वीडियो बनाने में मस्त थे।
हमेशा यातायात का दबाव झेलने वाला वह रूट मंगलवार की शाम भी जाम की चपेट में था। बनारस में जाम भी एक प्रमुख समस्या है। घटना के बाद आवागमन बाधित कर रूट डायवर्जन तो कर दिया गया मगर शहर भर को जाम से निजात नहीं मिली। यदि यातायात का दबाव ना होता और शहर जाम मुक्त होता,तो घायलों को अस्पताल पहुंचाने में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती।
इस दर्दनाक हादसे कितनी जिंदगी मौत के आगोश में समा गयी। कितने घायल मौत और जिंदगी के बीच जंग लड़ रहे थे। थोड़ी देर में राहत कार्य शुरू हुआ। कुछ लोगों पर कार्रवाई भी शुरू हुई। कुछ लोगों को निलंबित भी किया गया। देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री ने शोक जताया और मुआवजे की घोषणा भी की।
धीरे धीरे सबकुछ सामान्य हो जायेगा। आरोप प्रत्यारोप का दौर भी चलेगा, लेकिन जिनके परिवार उजड़ गये, क्या बस जायेगें। हर घटना के बाद प्रशासन जैसा करता रहा है वहीं यहां भी होगा। कुछ बदलने वाला नहीं है, क्योंकि न तो सरकार अपनी जिम्मेदारी दिखाती है और न ही सरकारी अधिकारी। यदि सुरक्षा के इंतजाम पहले से किये जाते तो किसी मां की गोद नहीं उजड़ती, कोई औरत विधवा नहीं होती, लेकिन ऐसा होगा नहीं। हमेशा से जो होता आया है वहीं अनवरत चलता रहेगा। पश्चिम बंगाल में देश के पीएम ने मौत को मजाक बनाया था और अब विपक्ष मौत को मजाक बना रहा है। क्योंकि संवेदनायें तो सभी की मर गयी हैं। आखिर हम ऐसे मौत के मंजर कबतक देखते रहेंगे।