Home धर्म और संस्कृति बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी. प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च. विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी. प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च. विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति

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atul shashtri

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी. प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च. विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति..

भारत के कुछ भाग में यह मान्यता है कि अश्विन मास के प्रतिपदा को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग सभी मान्यताओं के अनुसार यही एक ऐसा पूजन है जो सूर्य के पारगमन के आधार पर तय होता है.

भगवान विश्वकर्मा को देव शिल्पी कहा जाता है. उन्होंने सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेतायुग में लंका, द्वापर में द्वारका और कलियुग में जगन्नाथ मंदिर की विशाल मूर्तियों का निर्माण किया है. ऋगवेद में इनके महत्व का वर्णन 11 ऋचाएं लिखकर किया गया है. 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंति पर शुभ मुहूर्त में किया गया पूजन कारोबार में इजाफा करने के साथ ही आपको धनवान भी बना सकता है.

स्कंद पुराण के अंतर्गत विश्वकर्मा भगवान का परिचय “बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी. प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च. विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति” श्लोक के जरिए मिलता है. इस श्लोक का अर्थ है महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या की जानकार थीं. उनका विवाह आठवें वसु महर्षि प्रभास के साथ संपन्न हुआ था. विश्वकर्मा इन दोनों की ही संतान थे. विश्वकर्मा भगवान को सभी शिल्पकारों और रचनाकारों का भी इष्ट देव माना जाता है.

शुभ मुहूर्त- इस साल वृश्चिक लग्न जो कि सुबह 10:17 बजे से 12:34 तक है. यह विशेष लाभकारी व सफलतादायी है, क्योंकि मंगल पराक्रम भाव में उच्च का बैठा है.

भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि-विधान से करने पर विशेष फल प्रदान करती है. सबसे पहले पूजा के लिए जरूरी सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि की व्यवस्था कर लें. इसके बाद फैक्ट्री, वर्कशॉप, ऑफिस, दुकान आदि के स्वामी को स्नान करके सपत्नीक पूजा के आसन पर बैठना चाहिए. कलश को स्थापित करें और फिर विधि—विधान से क्रमानुसार या फिर अपने पंडितजी के माध्यम से पूजा करें. पूजा धैर्यपूर्वक करें और सम्पन्न होने के बाद अपने ऑफिस, दुकान या फैक्टरी के साथियों व परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही पूजा स्थान को छोड़ें.
भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर व्यक्ति को करनी चाहिए. सहज भाषा में कहा जाए कि सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक है, जिन कर्मो से जीव का जीवन संचालित होता है. उन सभी के मूल में विश्वकर्मा है. अतः उनका पूजन जहां प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक ऊर्जा देता है वहीं कार्य में आने वाली सभी अड़चनों को खत्म करता है.

ज्योतिष सेवा केंद्र मुंबई संस्थापक पंडित अतुल शास्त्री सम्पर्क क्रमांक 09594318403/9820819501

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