Home धर्म और संस्कृति श्रद्धापूर्वक मनाई गई हरि-प्रबोधिनी एकादशी

श्रद्धापूर्वक मनाई गई हरि-प्रबोधिनी एकादशी

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ज्ञानपुर,भदोही:- जिले भर में बुद्धवार को हरि प्रबोधिनी एकादशी का पर्व श्रद्धा पूर्वक परम्परा गत रूप से मनाया गया। श्रद्धालुओं ने एकादशी पर व्रत रखा। परम्परानुसार दीपावली की तरह शाम होते ही अनेक घर की मुडेरों पर दीपक सजाए गए। मोमबत्ती जलाकर लोगों ने प्रकाश पर्व मनाया। गन्ना चूसकर नेवान की परम्परा का निर्वहन किया गया।

बताते चलें कि हरि प्रबोधिनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पर्व को देखते सुबह श्रद्धालुओं ने जनपद के विभिन्न गंगाघाटों में डुबकी लगाई। जिले के गोपीगंज स्थित रामपुर गंगाघाट के साथ साथ सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल सीतामढ़ी, सेमराधनाथ, पंचमुखी, गुलरी घाट,बिहरोजपुर घाट,बेरासपुर घाट,इब्राहिमपुर घाट,डेरवां, भवानीपुर, जहाँ गीराबाद,समेत स्नान के बाद लोगों ने दान-पुण्य किया। अधिकांश लोगों ने उपवास रखकर फलाहार किया। इस उपलक्ष्य में लोगों ने गन्ना तथा नए गुड़ का सेवन किया। बच्चों व युवकों ने गन्ना चूसने का भरपूर आनन्द उठाया। मान्यता के अनुसार चार माह पूर्व आषाढ़ मास की हरि शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चातुर्मास शयन को चले गए थे। आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात् देवोत्थान एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागृत हुए। परम्परानुसार एकादशी पर तुलसी विवाह का विशेष प्रावधान है। परम्परा के अनुसार लोगों ने शाम को गन्ना चूसकर नेवान किया। विधान के अनुसार एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी विवाह सम्पन्न कराया जाता है। श्रद्धालुओं ने एकादशी पर व्रत रखकर परम्परा के अनुसार दीपावली की तरह शाम होते ही अनेक घर ‘ । गन्ना चूसकर नेवान की परम्परा का निर्वहन किया।

दीपावली जैसा रहा महौल

गोपीगंज, भदोही:- हरि प्रबोधिनी एकादशी को दीपालवी जैसा माहौल रहा। बहुत से लोगों ने दीपावली की तरह अपने घरों के मुडेरों पर मोमबत्ती व झालर लगाकर ज्योति पर्व मनाया। परम्परानुसार जिनके घर दीपावली को किन्हीं कारणों बस दीप नहीं जलाए जाते उनके घर एकादशी को दीपोत्सव मनाया जाता है। जैसे जब किसी के घर दीपावली के दिन किसी की मृत्यु हो जाती है तो उनके घर उसी समय से दीपावली नहीं मनाई जाती। ऐसे लोग देवोत्थान एकादशी के दिन दीपावली की तरह दीया जलाते हैं। बच्चों ने पटाखा जलाकर आनन्द लिया। युवतियों, महिलाओं व बालिकाओं ने घर आंगन में रंगोली सजाई।

घर में मंडप बनाकर हुआ तुलसी पूजन

तुलसी पूजन के लिए बुद्धवार को घर के आंगन या छत पर शाम को गन्ने का मंडप बनाया गया। उसी मंडप में तुलसी का पौधा व भगवान विष्णु का चित्र या प्रतिमा रख कर पूजन किया गया। महिलाओं ने तुलसी व शालिग्राम का विवाह सम्पन्न कराया। विवाह के अलावा मांगलिक गीत गाए गए। वैसे देवोत्थान एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी पूजन किया जाता है। उधर शाम को किसानों ने गन्ने के खेत में ‘थान’ पूजन किया। कहीं कहीं सुबह ही थान पूजन किया गया। एकादशी पर्व के दिन बाजारों में सुबह से ही गन्ना की बिक्री शुरू हो गई थी। लोगों ने नेवान के लिए जमकर गन्ने की खरीददारी की। इसी प्रकार सफेद और लाल कन्दा भी खूब बिका।

तुलसी विवाह से शुरू हो गए शुभ कार्य

हरि प्रबोधिनी एकादशी को हुए तुलसी विवाह के साथ जन सामान्य के लिए भी पाणिग्रहण संस्कार व अन्य शुभ कार्य करने का रास्ता खुल गया है।

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