Home भदोही न खाता, न बही, सूदखोर जो कहे, वही सही

न खाता, न बही, सूदखोर जो कहे, वही सही

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SURESH GANDHI

ब्याज में पैसा देकर कर्जदार का सबकुछ लूट लेने वाले सूदखोरों का आंतक इन दिनों चरम पर है। खासकर तब जब योगीराज में आम गरीब लोगों की जमीन हथियाने वाले बाहुबलियों, माफियाओं व डानों के खिलाफ कार्रवाई की डंका बज रहा है। हर कोई योगी की जयकारे लगा रहे है। लेकिन सूदखोर है कि शासन-प्रशासन के आंखों में धूल झोक खुलेआम निरीह गरीबों को लूट रहे है, धमकियाएं रहे है। आत्महत्या करने को विवश कर रहे है। योगी के सख्त निर्देश के बाद भी बेलगाम सुदखोरों के खिलाफ कार्रवाई तो दूर उनके इशारे पर ग्रामीण अंचलों में नंगा नाच हो रहा है। या यूं कहे मनी लांड्रिंग जैसे एक्ट की धज्जियां उड़ाई जा रही है — सुरेश गांधी

पूर्वांचल में ब्याज में रकम देकर कर्जदार से कई गुना पैसा वसूलने का धंधा धड़ल्ले से चल रहा है। हालांकि कोई इसकी शिकायत नहीं करता। परिणाम यह है कि सूदखोरी का अवैध धंधा व्यापक पैमाने पर फलफूल रहा है। साहूकारी का धंधा करने वाले लोग बिना लाइसेंस के सूद पर रुपया देते हैं। गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाकर आजीवन उनसे अवैध रूप से ब्याज वसूल करते हैं। ऐसे लोगों द्वारा वसूली के लिए अपराधियों को भी एजेंट रखा गया है, जो सूद पर उधार लेने वालों को डरा-धमकाकर, प्रताड़ित कर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का शोषण करते हैं। जब ब्याज व मूलधन की राशि समय पर नहीं लौटा पाने पर सूदखोरों के द्वारा जमीन, जायदाद सहित अन्य संपत्ति को गिरवी रख लेते हैं। हाल यह है कि आड़े वक्त में सूद पर रुपया उधार लेने वाले मुसीबतजदा लोगों को कर्ज लेने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़़ रही है। तो कुछ लोग जमीन-जायदादा से हाथ धो बैठते है। आलम यह है कि सूद पर कुछ हजार रुपए का कर्ज देकर सूदखोर, लोगों को इतना भयभीत कर देते हैं कि उन्हें अपनी महीने भर की कमाई का बड़ा हिस्सा चुकाना पड़ता है। ऐसे में गृहस्थी की गाड़ी लड़खड़ाने लगती है और सूदखोरों से भयभीत कर्जदार खुदकुशी पर मजबूर हो जाते हैं।

विडंबना है कि शहर में सूदखोरों के डर से आत्महत्या कर लेने के बावजूद पुलिस की कान में जूं तक नहीं रेंगती। किसानों को रकम देने के एवज में सूदखोर ज्यादा दर पर ब्याज लेतेे हैं। किसान किसी माह ब्याज नहीं जमा कर पाया तो उससे चक्रवृद्धि ब्याज वसूला जाता है। किसान उधार की रकम से ज्यादा ब्याज का भुगतान करने को मजबूर है। जबकि राज्य के पुलिस प्रमुख ने सभी पुलिस थानों को सूदखोरी पर रोक लगाने के लिए पासा, मनी लान्ड्रिग और गुंडागर्दी समेत कई धाराओं के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। लेकिन इसका असर सूदखोरों पर नहीं है। बता दें, 21वीं सदी में भी देश के कई हिस्सों में सूदखोरों का मकड़जाल फैला है। सरकार ने जनधन खातों की बात की। कहा कि अब देश के हर शख्स की पहुंच बैंक तक होगी। लेकिन देश की बड़ी आबादी आज भी लोकल महाजनों के भरोसे बैठा है। जिले में शहर से लेकर गांवों तक सूदखोरों का तगड़ा नेटवर्क है। इनकी नजर हमेशा जरूरतमंदों पर रहती है और इनके कारिंदे ऐसे लोगों की दुखती रग पर हाथ रखते हुए उन्हें अपने आका तक ले जाते हैं। अगर गिरवी रखने को कुछ न मिला, तब भी बनावटी दरियादिली दिखाते हुए कर्ज दिया जाता है। एक बार जिसने सूदखोरों से कर्ज ले लिया, फिर उससे उबरना आसान नहीं रहता। आखिर में उन्हें ब्याज चुका कर अपना सब कुछ गवां देना पड़ता है।

कहने को तो लिखा पढ़ी में निर्धारित दर पर ब्याज पर पैसा देने वाले सूचीबद्ध साहूकार हैं। यह सभी बैंक की निर्धारित ब्याज दर की तरह ही पैसा उधार देते हैं। लेकिन हकीकत में मनमाना ब्याज दर पर पैसा उधार देने वालों की संख्या हजारों लाखों में है। प्रतिमाह निर्धारित समय पर ब्याज और किश्त का पैसा न मिलने पर सूदखोर चक्रवृद्धि ब्याज वसूलते हैं और उधार लेने वाले के घर के कीमती सामान भी जबरन उठा ले जाते हैं। भदोही में ज्यादातार लोग सूदखोरों के जाल में फंसे हैं। सूदखोरों ने इन लोगों को पांच से दस प्रतिशत महीने ब्याज दर से पैसा दे रखा है। इनमें ज्यादातर अवैध रूप से सूदखोरी का धंधा कर रहे हैं। इनके चंगुल में फंसे कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिन पर इस कदर ब्याज चढ़ गया है कि अब उसे चुकाना उनके लिए मुश्किल है। मिर्जापुर में सूदखोरी का धंधा बेरोकटोक चल रहा है। सूदखोरों के चंगुल में फंसने के बाद कम ही कर्जदार उनके जंजाल से बाहर आ पाते हैं। अधिकतर तो ब्याज ही भरते रह जाते हैं। सूदखोर रकम और ब्याज की वसूली के नाम पर कर्जदार को जमकर लूटते हैं। कई बार तो ब्याज इतना ज्यादा हो जाता है कि कर्जदार का जेवर, मकान, प्लाट तक सूदखोर हथिया लेते हैं। जौनपुर में सूदखोर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन पर सितम ढहा रहे हैं। सोनभद्र में गुजरात में सूदखोरों का बोलबाला है। यहां सूदखोरों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के कारण भी आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि हुई है।

सूदखोरी के लिए पंजीयन जरूरी

सूदखोरी के लिए पंजीयन करवाना जरूरी है। सूदखोरी का व्यवसाय विभिन्न कानूनों के अधीन हो सकता है। मनीलैण्डर्स एक्ट, 1934 लागू है, जिसके अन्तर्गत 11(ए), 11(बी), 11(बीबी), 11(सी), 11(डी) और 11(ई) के तहत सूद में रुपए देने का व्यवसाय करने वाले व्यक्ति (मनी लैण्डर्स) का पंजीयन जरूरी है। इसके अलावा धारा-3 के तहत उन्हें खाता संधारण करना तथा उसको कर्ज लेने वाले व्यक्ति को देना आवश्यक है। यदि बिना लिखा-पढ़ी के कोई कर्ज दिया गया है, तो उसके संबंध में भी इन नियमों में उल्लेख किया गया है। धारा 11(एफ) के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति मनी लैंडिंग का व्यवसाय, बिना वैध पंजीयन प्रमाण-पत्र के नहीं कर सकता और ऐसा करने वाले व्यक्ति सजा के पात्र होंगे। ब्याज का अवैध कारोबार करने वाले व्यक्तियों की सूची ग्राम सभाओं में आम जनता के सामने पढ़ी जाएगी ताकि ग्रामीणों को सतर्क किया जा सके। वहीं इस अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए शासन द्वारा विशेष अभियान चलाया जाएगा। सूदखोरी के गैर कानूनी व्यवसाय की रोकथाम के लिए एक्ट है। पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग द्वारा निगरानी किया जाना है, लेकिन सब कागज पर ही है।

पुलिस थाने में करनी पड़ेगी शिकायत

कर्ज में डूबे लोग इस कदर सूदखोरों से डरे हुए हैं कि वे उनकी प्रताड़ना से तंग आकर भले ही जमीन जायदाद बेचकर कर्ज चुका देंगे या आत्महत्या करने जैया कठोर कदम उठा लेंगे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही है कि ऐसे सूदखोरों के खिलाफ थानों में शिकायत कर सकें। सूदखोरों के अनैतिक दबाव से बचने के लिए लोगों को सामने आ कर पुलिस में शिकायत करनी होगी तभी पुलिस कार्रवाई कर पाएगी। पर पुलिस से सही सपोर्ट नहीं मिलने से लोग शिकायत करने सामने नहीं आ रहे हैं।

मजबूरी का फायदा ऐसे उठा रहे

सूदखोर रकम देने से पहले कोरेे चेक व स्टांप पेपर में हस्ताक्षर करा लेते हैं। बाद में इन्हें वह शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं। किश्त मिलने में देरी या राशि मिलनी बंद हुई तो वह चेक में अपने हिसाब से रकम भरकर बैंक में जमा कर उसे बाउंस कराकर कोर्ट में दायर करा लेते हैं। साहूकारों की मिलीभगत कोर्ट के कर्मचारियों से रहती है। इसलिए उन्हें देरी नहीं होती। समय पर उनकी नोटिस तामील हो जाती है। सूदखोरों की नजर जरूरतमंदों की प्रापर्टी पर होती है। जिनके पास कुछ संपत्ति है उन्हें पहले उधार में रकम लेने के लिए विवश करते हैं। एवज में उनका घर, मकान व खेत के कागजात रखकर इन्हें अपने नाम से कराने के फिराक में रहते हैं।

बाजारों पर भी महाजनों का कब्जा

ग्रामीण अंचलों के बाजारों में ऐसे कई व्यापारी है जो किराना व कपड़े की दुकान की आड़ में सूदखोरी करते हैं। कुछ लोगों का नाम उजागर होता है तो वे उन्होंने व्यापारी संघ का दामन थाम लेते है। बताते है कुछ लोग दैनिक ब्याज पर भी रकम देने का कारोबार करते है। सुबह का दिया 100 रुपए शाम होते तक ब्याज सहित 110 रुपए हो जाता है। एक माह में यही राशि बढ़कर 300 हो जाती है। बाजार में कुछ सटोरिए भी सूदखोरी करते हैं। ये लोग एक लाख से अधिक का लेनदेन करते है।

सूदखोरों के खिलाफ अभियान बंद

सालभर पहले पुलिस ने सूदखोरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। रेलवे के अलावा शहर के छोटे मोटे सूदखोरों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किए गए। इसके बाद यकायक क्या हुआ कि पुलिस ने सूदखोरों की हरकतों पर गौर करना बंद कर दिया। कई मामले ऐसे आए हैं जिनमें सूदखोरों ने 1 हजार रुपए उधार में दिया व एवज में 10-10 लाख रुपए तक वसूले। वहीं कुछ अपनी पूरी संपत्ति गंवाने के बावजूद अब तक कर्ज के बोझ से दबे कराह रहे हैं।

शिकायत करने से कतराते हैं लोग

बेहद जरूरतमंद व्यक्ति ही सूदखोर से कर्ज लेता है, इसलिए उस पर कर्ज चुकाने का खासा दबाव रहता है। कर्जदार तो पूरी रकम चुकाना चाहता है, मगर ब्याज की रकम ही इतनी ज्यादा होती है कि उसकी कमाई इसे चुकाने में ही चली जाती है। सिर पर कर्ज होने की वजह से वह पुलिस प्रशासन से शिकायत करने का जोखिम उठाने में कतराता है। ऊपर से सूदखारों का रसूख भी उनको ऐसा करने से रोक देता है।

साहूकारी का लाइसेंस लेने के लिए नियम

  • एसएसपी और एसडीएम की रिपोर्ट पर ही मिलता है लाइसेंस
  • हर साल कराना पड़ता है लाइसेंस का नवीनीकरण
  • लाइसेंस और नवीनीकरण का शुल्क 15 रुपये
  • लाइसेंस लेने के लिए बैंक में पैसा होना जरूरी
  • बैंक की तरह सालाना ब्याज दर पर ही लिया जा सकता है ब्याज
  • बिना लाइसेंस छह माह की सजा या पांच हजार रुपये जुर्माना

कोरोना संग सूदखोरों का खौफ

कोरोना संकट के दौरान लोगों में सूदखोरों के ब्याज का भी डर है। एक ओर जहां अधिकतर लोग पैसे की कमी का सामना कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग दूसरों के पैसे को ब्याज में बदलना चाह रहे हैं। कुछ सूदखोर प्रति माह 3-10 प्रतिशत ब्याज ले रहे हैं। लोगों को डराया, पीटा और धमकाया जा रहा है। एक तरफ राज्य के पुलिस प्रमुख ने सूदखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं तो दूसरी ओर उत्पीड़न के कारण आत्महत्या करने वाले लोगों के मामले भी सामने आ रहे हैं। आधिकारिक नियमों के अनुसार जिसके पास पैसा उधार देने का लाइसेंस है वह हर साल 18 से 21 प्रतिशत ब्याज ले सकता है। ऐसे उधार देने वालों को पांच साल तक की पूरी जानकारी के साथ खाता रखना होगा। दूसरी ओर अवैध ब्याज का व्यवसाय इस हद तक फल-फूल रहा है कि साधारण डायरी या नोट में कोड भाषा में सामान्य संख्या लिखकर ब्याज पर पैसे का भुगतान किया जाता है। ऐसे सूदखोर सालाना कम से कम 36 प्रतिशत से 120 प्रतिशत (21 प्रतिशत की आधिकारिक ब्याज दर है) वसूलते हैं।

किसी भी जिले में नहीं है सूदखोरों की लिस्ट

राज्य सरकार द्वारा अपंजीकृत सूदखोरों से श्रमिकों और किसानों को मुक्ति दिलाने की घोषणा इन दिनो काफी चर्चाओं मे है। मुख्यमंत्री योगी ने तो यहां तक कह दिया है कि ऐसे लोगों से लिया गया कर्ज अब पटाने की भी जरूरत नहीं है। इसके बावजूद अब तक जिले मे कोई कार्यवाही न होना इन घोषणाओं के क्रियान्वयन पर ही सवाल खड़े करता है। जिम्मेदार विभागों की इस मामले मे चुप्पी भी आश्चर्यजनक है। जानकारों का मानना है कि जिले मे जगह-जगह फैले सूदखोरों का चिन्हांकन और लिसिं्टग के अलावा इनके चुंगुल मे फंसे कमजोर व गरीब तबके तक जब तक सीएम के घोषणा की जानकारी नहीं पहुंचेगी, इसका फायदा शायद ही लोगों को मिल सके। हाल यह है कि जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण अंचलों तक ब्याजखोरी का कारोबार कोई नई बात नहीं है। यहां ऐसे भी कई परिवार हैं, जिन्होने यदि एक बार दुकानदारों से नगद या उधार सामान खरीदा, फिर वे कभी उनके कर्ज से उऋण हुए ही नहीं। अनेक लोगों को तो उधारी चुकता करने के लिये अपनी जमीने, जेवर और पशु तक बेंचने पड़े। बताया गया है कि सूदखोरों की दुकानदारी किसानों से लेकर कोयलांचल, रेलवे, मंगठार पावर प्लांट आदि मे कार्यरत मजदूरों के बीच अभी भी बेरोकटोक चल रही है।

एटीएम कार्ड और पासबुक भी गिरवी

कहा जाता है कि सूदखोर गरीबों की मजबूरी का फायदा उठा कर उनका काम तो चला देते हैं, परंतु उनसे 10 से 30 प्रतिशत तक मोटा ब्याज वसूलते हैं। इसके लिये कारोबारी कर्जदार का एटीएम, पिन नंबर और पासबुक तक अपने कब्जे मे ले लेते हैं और जैसे भी तन्ख्वाह मजदूर के खाते मे आई, पूरा पैसा निकाल लिया जाता है।

ईमानदार देनदार परेशान

सरकार की घोषणा ने सूदखोरों के लिए भी समस्याएं खड़ी कर दी हैं। इसका मुख्य कारण कर्जदारों की डगमगाती नियत है। बताया जाता है कि जिले मे कई ऐसे व्यापारी और अढ़तिया हैं जो वर्षो से खेती-किसानी, शादी-विवाह या आकस्मिक जरूरत के समय तत्काल किसानों, मजदूरों आदि को वाजिब ब्याज पर रकम उधारी मे देते हैं। जब से मुख्यमंत्री ने सूदखोरों का पैसा न लौटाने की बात कही है, तब से कर्जदारों की नियत डोल गई है, अब वे पैसा लौटाने मे आनाकानी करने लगे हैं। इस कारोबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ऐसे मे ईमानदार व्यापारियों का लाखों रूपये डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया है। कई लोग तो उधारी देने का धंधा ही बंद करने की सोच रहे हैं।

सूदखोर कैसे बिछाते हैं जाल

सूदखोर अक्सर मजबूर लोगों की ताक में रहते हैं। जब किसी को पैसे की बेहद जरूरत पड़ती है तो वो सूदखोर के पास जाता है। शुरू में पांच टका ब्याज तय होता है। लेकिन अगर ब्याज की रकम वक्त पर नहीं चुकाई गई तो यही ब्याज 30 टका तक पहुंच जाता है।

खुदकुशी की वजह

पैसे देने से पहले अक्सर सूदखोर ब्लैंक चेक पर साइन करवा लेते हैं। कई बार वो जमीन भी लिखवा लेते हैं। वक्त पर पैसे न आने पर सूदखोर सामाजिक बेइज्जती करने की धमकी देते हैं। चेक बाउंस होने पर जेल भिजवाने की धमकी देते हैं। अक्सर दबंगों से कर्जदार को धमकाया भी जाता है। ऐसे में कर्ज लेने वाले शख्स को आत्महत्या ही एक रास्ता नजर आता है। सूदखोरों के चंगुल में फंस चुके लोग बताते हैं कि सूदखोर मनमर्जी का ब्याज वसूलते हैं। मनी लेंडिंग एक्ट के तहत तय से ज्यादा ब्याज नहीं लिया जा सकता है, लेकिन सूदखोर मनमर्जी से ब्याज वसूल रहे हैं।

पुलिस की मिलीभगत

लोगों का कहना है कि पुलिस सूदखोरों के खिलाफ सख्त एक्शन नहीं लेती। उसका रवैया टालमटोल वाला होता है। पिछले दिनों सूदखोरों से परेशान होकर आत्महत्याओं की घटनाओं के बाद लोगों ने शिकायत की, लेकिन कार्रवाई नहीं होती। लगातार हो रहे खुदखुशी के मामले से इतना तो साफ है कि प्रशासन को इन गरीबों के दुख की कोई परवाह नहीं है।

सूदखोरों के खिलाफ है सख्त कानून

उत्तर प्रदेश साहूकार विनियम अधिनियम-2008 की धारा 12 के मुताबिक लाइसेंसधारी साहूकारी कर्ज दे सकते हैं। वह भी निर्धारित शर्तों और नियमों के मुताबिक। साहूकार अपने द्वारा दिए गए कर्ज पर वाणिज्यिक (कामर्शियल) बैंक द्वारा निर्धारित दर से ब्याज ले सकता है। बिना लाइसेंस ब्याज पर कर्ज देना प्रतिबंधित है। इस पर धारा-22 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। अधिनियम की धारा-11 में कहा गया है कि गिरवी रखी गई वस्तु को साहूकार अमानत की तरह रखेगा। इकरारनामे में मूलधन का उल्लेख और रजिस्ट्रेशन नंबर दर्ज होना चाहिए। कर्जदार किस्त वापस करे तो एक गवाह के सामने साहूकार इसे लेकर रसीद देगा। बिना रजिस्ट्रेशन के साहूकारी करने या शर्तों का उल्लंघन करने पर छह माह तक की जेल और पांच हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं। एक्ट की धारा-23 में प्राविधान है कि कर्जदार का उत्पीड़न किया तो तीन माह की कैद या 500 रुपये जुर्माना अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं।

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