अयोध्या। प्रतिष्ठित पीठ लक्ष्मणकिला के परिसर में बॉलीवुड के सितारों से सज्जित नौ दिवसीय रामलीला के दूसरे दिन राम जन्म के उल्लास की छटा बिखरने के साथ राक्षसों के वध का रोमांच भी परिभाषित हुआ। दूसरे दिन की शुरुआत पारंपरिक गणेश वंदना से हुई। हालांकि सशक्त निर्देशन, कलाकारों की चपलता और बॉलीवुड की तकनीक का तड़का परंपरा के साथ रामलीला की नयी संभावनाएं प्रशस्त करने वाला रहा। इसके बाद लीला का क्रम आगे बढ़ता है। बुजुर्ग हो चले राजा दशरथ पुत्रहीनता का दुख अत्यंत कातर हो गुरु वशिष्ठ से बांटते हैं और गुरु की सलाह पर राजा श्रृंगीऋषि से यज्ञ करवाते हैं।
तकनीक का सटीक प्रयोग और पात्रों का जीवंत अभिनय दर्शकों को 21वीं सदी की भागम-भाग जिदगी से ऊपर उठाकर युगों पुराने उस दौर में ले जाता है, जब प्रभु श्रीराम सहित भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। श्रीराम सहित चारो भाइयों के जन्म की प्रस्तुति के साथ मंच बधाई गान से सराबोर होता है और प्रसन्नता की यह गुदगुदाहट दर्शकों को भी अपने आगोश में लेती है। राम जन्म के साथ चारो भाइयों सहित श्रीराम की बाल लीला आह्लाद का संचार करती है। ²श्य परिवर्तित होता है। राजा दशरथ दरबार में गुरु वशिष्ठ से चारो राजकुमारों के नामकरण का अनुरोध करते हैं। गुरु पूरी गरिमा और तात्विकता से चारो भाइयों का नामकरण करते हैं। इसके बाद शिक्षा-दीक्षा की बारी आती है। चारो भाई माता-पता का चरण स्पर्श कर गुरु के साथ गुरुकुल के लिए प्रस्थान करते हैं।
इस दौरान माता-पिता के साथ यदि दर्शकों की आंख भी नम हुए बिना नहीं रहती, तो अगले ²श्य में चारो भाइयों को धनुर्विद्या की शिक्षा लेते देखना शौर्य-संकल्प का संचार करने वाला होता है। चारो भाई धनुर्विद्या की परीक्षा में सफल हो गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। एक अन्य ²श्य में विश्वामित्र अपने आश्रम में तपस्यारत होते हैं और उनकी तपस्या में मारीच-सुबाहु नाम के राक्षस विघ्न डालते हैं। सुबाहु की भूमिका में बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार अवतार गिल अपनी ख्याति के अनुरूप पूरी जान डालने में सफल दिखते हैं। अगले ²श्य में ऋषि विश्वामित्र दशरथ के दरबार में उपस्थित होते हैं और यज्ञ रक्षा के लिए राम-लक्ष्मण की मांग करते हैं। कुछ संशय के बाद दशरथ उनकी मांग स्वीकार करते हैं और राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम की रक्षा के लिए भेजते हैं। मार्ग में राम-लक्ष्मण पराक्रम का परिचय देते हुए पूरी तत्परता से ताड़का नाम की भयंकर राक्षसी का वध करते हैं और अगले ²श्य में ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न डालने की कोशिश करता हुआ सुबाहु मारा जाता है और मारीच जख्मी होकर दूर जा गिरता है।