Home अयोध्या आम की उत्तम पैदावार के लिए कृषि वैज्ञानिक ने दिये टिप्स 

आम की उत्तम पैदावार के लिए कृषि वैज्ञानिक ने दिये टिप्स 

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कुमारगंज-अयोध्या। नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्यौगिक विश्व विद्यालय नरेन्द्र नगर ( कुमारगंज ) अयोध्या के कृषि वैज्ञानिक प्रो. रविप्रकाश मौर्य ने आम के पेड़ों में बौर आने से पहले सावधानी बरतने की सलाह दी है।  उन्होनें कहा कि आम के पेड़ों में इस समय कहीं-कहीं बौर जनवरी माह से आना शुरू हो गये हैं इसलिए बागवानों को अच्छा उत्पादन लेने के लिए अभी से इसकी देखभाल करनी होगी। उन्होंने बताया कि जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो तथा खिल रहा हो उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसका परागण हवा या मधु मक्खियों द्वारा होता है। अगर कीटनाशक का छिड़काव कर दिया तो मक्खियाँ मर जायेंगी और बौैर पर छिड़काव से नमी होने के कारण परागण नहीं हो पाएगा,जिससे फल बहुत कम आयेंगे।

डा. रवि ने बताया कि भुनगा कीट आम की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट के शिशु एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों एवं पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं। इसकी मादा १०० से २०० तक अंडे नई पत्तियों एवं मुलायम प्ररोह में देती है, और इनका जीवन चक्र १२ से २२ दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी से शुरू हो जाता है। इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूंद ५ ग्राम को एक लीटर पानी मे घोल कर छिड़काव करें या नीम तेल २ मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव करके भी निजात पायी जा सकती है। सफेद चूर्णी रोग ( पाउडरी मिल्ड्यू ) बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी लग जाती है।

इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पडऩे लगता है। इसकी वजह से मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं। इस रोग के लक्ष्ण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर २ ग्राम गंधक को प्रति लीटर पानी मे घोल कर छिड़काव करें। इसके अलावा कैराथेन 1 मिली को दो लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने चाहिये। आम के फल में दूसरी बीमारी गुच्छा रोग का है इसका लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है। इस बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर व शाखाओं को तोड़कर किया जा सकता है। कलियां आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है।

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