Home सम्पादकीय कोरोना से युध्द : शशांक पाण्डेय

    कोरोना से युध्द : शशांक पाण्डेय

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    पूरा विश्व आज एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। अखबारों में, समाचारों में, रेडियो में, सोशल मीडिया में और अन्य जगहों पर सिर्फ एक ही चर्चा है – “कोरोना”। कोरोना के काले बादल देशों की सीमाओं को तोड़कर पूरे संसार में छा चुके हैं। हर तरफ़ निराशा और बेबसी के हालात हैं। बीसवीं सदी की शुरुआत और मध्य में हुए पहले और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कोरोना ही वह संकट है जिसका प्रभाव दुनिया के हर देश तक फैल चुका है या फैलने वाला है। प्रभाव भी ऐसा कि विश्वयुद्ध के बाद खुद के सुपर पावर होने का दंभ भरने वाले देश भी घुटनों पर आ चुके हैं। ऐसे वैश्विक संकट से लड़ने का उपाय भी उसी दौर में बताया गया है। विश्वयुध्दों में अपनी रक्त पिपासा पूरी करने के बाद जब ताकतवर देशों को मानव कल्याण और शांति की याद आई तो 1944 में सभी देशों ने मिलकर दोबारा शांति बहाल करने के उद्देश्य से कई समझौतों पर रजामंदी की जिसे ‘ब्रेटनवुड्स कांफ्रेंस’ के नाम से जाना गया। आज 75 वर्षों के बाद वैसी ही परिस्थिति विश्व समुदाय के सामने है। सभी देशों को अपने स्वार्थहित और मतभेद को भूलकर एक साथ इस महामारी से लड़ना होगा।
    विश्वबंधुत्व में यकीन रखने वाला भारत भी कोरोना के संक्रमण से ग्रसित है। भारत की हालत कई विकसित देशों के मुकाबले कुछ बेहतर है। गौर करने वाली बात ये है कि चीन से सीमा साझा करने के बावजूद भारत में संक्रमण अमेरिका, इटली, ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और अन्य कई देशों के मुकाबले नियंत्रण में है। आयुर्वेद और योग का जनक होने के नाते भारत में इनका अभ्यास करने वालों की संख्या भी अधिक है। दुनिया के कई शोधार्थियों ने अपनी खोज में ये पाया है कि योग के माध्यम से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता में भी वृद्धि होती है अतः सभी को इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। केंद्र सरकार के प्रोएक्टिव कदमों और लॉक डाउन की कड़ाई के कारण संक्रमण फैलने की गति कुछ धीमी जरूर है पर थोड़ी सी भी लापरवाही भयंकर परिणाम तक ले जा सकती है। भारत की चिकित्सा व्यवस्था अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों के मुकाबले उतनी मजबूत नहीं है इसलिए सरकार की पहली प्राथमिकता इस बीमारी की फैलने से रोकना है। हताशा के दौर में भारत के लिए अच्छी बात ये है कि पूरा देश सरकार पर यकीन करता है और उसके निर्देशों का अनुपालन भी कर रहा है। शायद इसीलिए अब तक अराजकता या अव्यवस्था की कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई है। ऐसी विषम परिस्थिति में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के सामने अपने नागरिकों और अन्य देशों की अपेक्षा पर खरा उतरना एक बड़ी चुनौती है।
    शशांक पाण्डेय

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